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शिव और पार्वती की पूजा वाला यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में इसे गौर कहते हैं और कार्तिक में मनाते हैं । यह महिलाओं का पर्व है। मालवा में इसे दो बार मनाया जाता है। चैत (मार्च-अप्रैल) तथा भादो माह में स्त्रियां शिव-पार्वती की प्रतिमाएं बनाती हैं तथा पूजा करती हैं, पूजा के दौरान महिलाएं नृत्य करती हैं। बताशे बांटती हैं और प्रतिमाओं को जलाशय या नदी में विसर्जित करती हैं। विभिन्न भागों में इस पर्व से संबंधित अनेक जनश्रुतियाँ हैं।
साल में दो बार मनाई जाती है। एक चैत माह में होली के उपरांत तथा दूसरी कार्तिक में दीपावली के बाद। यह रक्षाबंधन की तरह ही है। बहनें भाई को कुमकुम, हल्दी, चावल से तिलक करती हैं तथा भाई, बहिनों को उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। इस पर्व से संबंधित एक प्रचलित कथा इस प्रकार है। यमुना (नदी), यमराज (मृत्यु के देवता), की बहन थी एक बार यमराज भाईदूज के दिन बहन से टीका कराने कुछ उपहार आदि लेकर पहुंचे तो यमुना ने उपहार लेने से इंकार कर दिया और कहा हे भाई! मृत्यु के स्वामी! मुझे वचन दो कि आज के दिन जो भाई, बहिन से टीका कराएगा, उसकी उम्र में एक दिन बढ़ जाएगा। यमराज ने कहा "तथास्तु"।इस तरह की अनेक कहानियां इस संबंध में प्रचलित हैं।
छत्तीसगढ़ की अविवाहित लड़कियों का प्रमुख त्यौहार है। वैशाख (अप्रैल-मई) माह का यह उत्सव दूसरे अर्थों में विवाह का स्वरूप लिए है। इसमें अकाव की डालियों का मंडप बनाते हैं। इसके नीचे पड़ोसियों को दावत दी जाती है । कुछ स्थानों पर इसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं।