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नवान्न
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काकसार
होली
स्त्री व पुरूषों को एकान्त प्रदान करने वाला यह पर्व अबूझमाड़िया आदिवासियों का प्रमुख पर्व है। इसकी विशेष बात यह है कि युवा लड़के-लड़कियां एक दूसरे के गांवों में नृत्य करते पहुंचते हैं। वर्षा की फसलों में जब तक बालियां नही फूटती अबूझमाड़िया स्त्री-पुरूषों में एकान्त में मिलना वर्जित होता है। काकसार उनके इस व्रत को तोड़ने का उपयुक्त अवसर होता है। काकसार में लड़के और लड़कियां अलग-अलग घरों में रात भर नाचते और आनन्द मनाते हैं। कई अविवाहित युवक-युवतियों को अपने लिए श्रेष्ठ जीवन साथी का चुनाव करने में यह पर्व सहायक सिद्ध होता है।
मंडला जिले के बैगा आदिवासियों का यह प्रमुख त्यौहार है। बैगा आदिवासी इस पर्व के संबंध में अपने पुराण पुरूष नागा-बैगा से बताते हैं। इस बारे में बड़ी रोचक कथा प्रचलित है- एक बार मोहती और अन्हेरा झाड़ियों में लगी शहद से एक बूंद शहद जमीन पर जा गिरी। नागा-बैगा ने उसे उठाकर चख लिया। चखते ही सारी मधुमक्खियां बाघ बन गई। बैगा जान बचाकर भागा। जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि सारा घर मधुमक्खियों से भरा है। उसने मधुमक्खियों को वचन दिया कि वह हर नौवें वर्ष उनके पूजन का आयोजन करेगा तब ही उसका छुटकारा हुआ।
रंगों का पर्व होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। सभी वर्गों के लोग, यहां तक कि आदिवासी भी इसे उतसाह से मनाते हैं। इस पर्व में पांच से सात दिन प्रदेश के विभिन्न अंचलों में अलग-अलग विधियों से लकड़ियां एकत्र कर होली जलाते हैं। इसकी आंग को प्रत्येक गांव वाला अपने घर ले जाता है। यह नई पवित्र आग मानी जाती है। दूसरे दिन से लाग तरह-तरह के स्वांग रचकर मनोरंजन करते हैं और पिचकारियों में रंग भरकर एक दूसरे पर डालते हैं। यह क्रम कई दिन तक चलता है। होली का पर्व लगभग सभी हिन्दू त्यौहारों में सर्वाधिक आनंद, उमंग और मस्ती भरा त्यौहार है।